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________________ ही वर्णन करते हैं । अत उन्हे सत्याश कहा जा सकता है । अतएव एक व्यक्ति जो कुछ कहता है वह भी सत्याश है, दूसरा जो कहता है वह भी सत्याश है। तीसरा कहता है वह भी सत्याश है। इस प्रकार अगणित व्यक्तियोके कथन सत्याश ही ठहरते है। यदि इन सब सत्याशोको मिला दिया जाय तो पूर्ण सत्य बन सकता है। इस चूर्ण सत्यको प्राप्त करनेके लिए हमे उन सत्याशो अर्थात् दूसरोके दृष्टिकोणोके प्रति उदार, सहिष्णु और समन्वयकारी बनना होगा और यही सत्यका आग्रह है। जबतक हम उन सत्याशो-दूसरोके दृष्टिकोणोके प्रति अनुदार-असहिष्णु बने रहेगे, समन्वय या सामञ्जस्यको प्रवृत्ति हमारी नही होगी, हम सत्यको नही प्राप्त कर सकेगे और न हमारा व्यवहार ही समाजके लिए मगलमय होगा। विराट् सत्य असख्य सत्याशोको लेकर बना है। उन सत्याशोकी उपेक्षा करनेसे हम कभी भी उस विराट् सत्यको नही प्राप्त कर सकेगे । आपेक्षिक सत्यको कहने और दूसरोके दृष्टिकोणमे सत्य ढूँढने एव उनके समन्वय या सामजस्य करनेको पद्धति या शैलो उदारता है । यह उदारता समाजको सुगठित, सुव्यवस्थित और समृद्ध बनानेके लिए आवश्यक है। उदारता सत्यको ढूंढने तथा अपनेसे भिन्न दृष्टिकोणोके साथ समझौता करनेकी प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया द्वारा मनोभूमि विस्तृत होती है और व्यक्ति सत्याशको उपलब्ध करता है। उदार दृष्टिकोण या समन्वयवृत्ति ही सत्यकी उपलब्धिके लिए एकमात्र मार्ग है। आग्रह, हठ, दम्भ और सघर्षोंका अन्त इसीके द्वारा सम्भव है। हठ, दुराग्रह और पक्षपात ऐसे दुगुण है जो एक व्यक्तिको दूसरे व्यक्तिसे समझौता नही करने देते । जब तक विचारोमे उदारता नही, अपने दृष्टिकोणको यथार्थरूपमे समझनेकी शक्ति नही, तव तक पूर्वाग्रह लगे ही रहते हैं। उदारता यह समझनेके लिए प्रेरित करती है कि किसी भी पदार्थमे अनेक रूप और गुण है । हम इन अनेक रूप और गुणोमेसे कुछको हो जान पाते हैं । अत हमारा ज्ञान एक विशेष दृष्टि तक ही सीमित है। जब तक हम दूसरोके विचारोका स्वागत नही करेंगे, उनमे निहित सत्यको नही पहचानेगे, तबतक हमारी ऐकान्तिक हठ कैसे दूर हो सकेगी। उदारता या विचारसमन्वय वैयक्तिक और सामाजिक गुत्थियोको सुलझाकर समाजमे एकता और वैचारिक अहिंसाकी प्रतिष्ठा करता है। समाजधर्मको दूसरी सीढ़ी · विश्वप्रेम और नियन्त्रण समस्त प्राणियोको उन्नतिके अवसरोमे समानता होना, समाजधर्मको दूसरी सोढी है और इस समानताप्राप्तिका साधन विश्वप्रेम या अत्मनियन्त्रण है । जिस व्यक्तिके जीवनमे आत्म-नियन्त्रण समाविष्ट हो गया है वह समाजके तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ५८१
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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