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जैन पूजा पाठ मप्रह
उन्नत जशोक तर के नीचे निर्मल शरीर अतिशय कारी, सति ज्ञान्तिदान जगमगा रहा झोकी लगती है नति प्यारी, यह हृदय देव लगता मानो तन ने उजियाला पाया हो, या फिर मेघों को चोर सूर्य का दिम्ब निकन्न जाया हो ॥ २८ ।।
है प्रभु ये मणिमय सिंहासन जितकी किरणें जगमगा रही, सुवरण से ज्यादा कान्तिवान तन को शोमा जति बढ़ा रही, ऐसा लगता उदयाचल पर सोने का सूरज बना हुमा,
जिस पर किरणों का कातिवान अन्दर चन्दोवा तना हुजा ।। २६ !! जब समोशरण मे मगदन के सोने समान सुन्दर तन पर, दुरते हैं जति रमलोक चवर जो कुन्द पुष्प जसे मनहर, तब ऐसा लगता है सुमेर पर जल की धारा बहती हो, चन्द्रमा समान उज्ज्वल राशि मरमर मरनों से मरती हो ॥ ३० ॥
शशि के समान सुन्दर मन हर रवि ताप नाश करनेवाले, मोतो मरिणयो से जड़े हुये शोमा महान देनेवाले, प्रभु के सर पर शोभायमान वय छत्र समो को दता रहे,
ये तोनसोक के स्वामी हैं जगमग कर जग को बता रहे ॥ ३१ ॥ गम्भीर उच्च रुचिकर ध्वनि से जो चारो दिशा गुलाते हैं, सत्सग की महिमा तीनलोक के जीवो को बतलाते हैं, जो तोयटर की विजय घोषणा का यश गान सुनाते हैं, गुलायमान जो नम करते वह दुन्दुमि देव घजाते हैं ।। ३२॥
जो पारिजात के दिव्य पुष्प मन्दार सादि से लेकर के, करते हैं सरगरा पुष्पवृष्टि गन्दोदविन्दु को दे कर के, ठण्डो क्यार में समावति जद कल्प वृक्ष से गिरती है,
तद लगता प्रभु को दिव्यध्वनि ही पुष्प रूप में सिरती है ॥ ३३ ॥ जो त्रिभुवन में दैदीप्यमान की दोष्ठि जीतनेवाली है, पो कोटि सूर्य को नामा को मो लजित करनेवाली है, जो शशि समान हो शान्ति सुघा जग को वर्षानेवाली है, उस मामण्डल की दिव्य चर्चादनी से मी छटा निराली है।। ३४ ।।