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सोरठा - की शक्ति प्रमान, शक्ति विना सरधा धरे । 'द्यानत' सरधावान, अजर अमरपद भोगवे || हीना।
दोहा - श्री जिनके परसाद तें, सुखी रहें सब जीव यातें तन मन वचन तें, सेवो भव्य सदीव ॥
इयानी क्षिपेत् ।
श्रीपार्श्वनाथ स्तुति छप्पय ( सिहावलोकन )
जनम - जलधि - जलजान जान जनहंस - मान सर । सरव इन्द्र मिलि आन, आन जिस धरहिं शीसपर || चान, परउपकारी चान उत्थपर कृनय गन । घनसरोजवर भान, भान मम मोह तिमिर धनवरन देह दुख दाह हर, हरसत हेरि मयूर मनमथ - मतङ्ग हरि पासजिन जिन विसर छिन जगत
घन ॥
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,
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मन ।
जन ॥