________________
बैन पूजा पाठ सह
कमला चलत न पैड जाय, मरघट तक परिवारा। अपने-अपने सुख को रोवें, पिता पुत्र दारा ।। १० ।। ज्यों मेले में पीजन, मिलि नेह फिर धरते। ज्यों तरुवर पै रैन बसेरा, पंछी आ करते ।। कोस कोई दो कोस कोई, उड फिर धक-धक हार। नाय अकेला हंस सग में, कोई न पर मारै।। ११॥
५ मिन्न (अन्यत्व) भावना ! मोहरूप मृगतृष्णा जग में, मिथ्या जल चमक। मृग चेतन नित भ्रम में उठ-उठ, दो धक-धक । अल नहि पाच प्राण गमाव, मटक-मटक मरता । वस्तु पराई मानै अपनी, भेद नहीं करता ।।१२।। तू पंतन अरु देह अचेतन, यह जड तू ज्ञानी । मिले अनादि यवन विछुई, ज्यों पय अरु पानी। रूप तुम्हारा सबसों न्यारा, भेद ज्ञान करना। जौलों पौरुष ध न दोलों, उद्यमसों घरना ॥ १३ ॥
६ अशुचि भावना। तू नित पोखे यह सूख ज्यों, घोर त्यो मैली। निश दिन करै उपाय देह का, रोगदशा फैली ॥ मात-पिता रज वीरज मिल कर, बनी देह तेरी। मास हाड़ नश लहू राधकी, प्रगट व्याधि घेरी ॥१४॥