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जेन पूजा पाठ सप्रह
पुनि रानी सो नृप कहे, बावन भवन जिनाल । तेरह चोका बन्दि कर, पूज करी तत्काल || प्राणी० ॥ जयमाला तहाँ मो मिली, आयो हूँ तुम पास । । अब तू मिथ्या मत कहे, पूज करी तज आस ।। प्राणी० ॥ पूरब दक्षिण वन्दि कर, पश्चिम उत्तर जान । मिथ्या भाषौ हूँ नही, मोहि जिनवर की आन ॥ प्राणो० ॥' सुन राजा तें सच कही, जिनवाणी शुभसार । ' ढाई दीप न लघई, मानुष गिरि विस्तार ॥ प्राणी० ॥ विद्यापति से सुर भयो, रूप धारि यह सोय । । रानी को तव स्तुति करी, निश्चय समकित तोय ॥ प्राणी० ॥ देव कहे रानो सुनो, मानुषोत्तर गिरि जाय । तह ते चय मैं सुर भयो, पूजि नन्दीश्वर आय ॥ प्राणी० ॥ एक भवान्तर मो रहो, जिन शासन परमाण । मिथ्याती माने नहीं, श्रावक निश्चय आण ॥ प्राणो० ॥ सुरचय तहाँ हयनापुरी, राज कियो भरपूर । ' परिग्रह तज सयम लियो, कर्म महागिरि चूर ॥ प्राणी० ॥ केवलज्ञान उपाय कर, मोक्ष गयो मुनिराय । शाश्वत सुख विलसे सदा, जामन मरण मिटाय ॥ प्राणी०॥ अब रानो की सुन कथा, सयम लीनो सार । तप करके वह सुर भई, विलसे सुख विस्तार ॥ प्राणी० ॥