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________________ HA दुख:हरण स्तुति श्रीपति जिनवर करुणा यतनं, दुःसहरण तुम्हारा बाना है । मत मेरी बार भार करो, मोहि देहु विमल कल्याना है ॥ टेक!! कालिफ वस्तु प्रत्यक्ष लसो, तुममा कछ बात न छाना है। मेरे उर आरत जो वरत, निहचे सब सो तुम जाना है। अबलोक विधा मत मौन गही, नही मेरा कही ठिकाना है। दो राजिरलोचन गांचविमोचन, मैं तुममौ हित ठाना है। श्री. सर ग्रन्धान में निरग्रन्यनि ने, निरधार यही गणधार कही। जिननायक ही सब लायक है, सुखदायक क्षायक ज्ञानमही ।। यह बात हमारे कान परी, तर आन तुमारी शरण गही। क्यों मेरी वार विलय करो, जिननाध सुनो यह बात सही ।। श्री. काह को भोग मनोग करो, काह को स्वर्ग विमाना है। काह को नाग नरेशपति, काहू को ऋद्धि निधाना है। वर मो पर क्यों न कृपा करते, यह क्या अन्धेर जमाना है। इनसाफ करो मत देर करो, सुखवृन्द भजो भगवाना है ।। श्री. खल कम मुझे हैरान किया, तब तुम सों आन पुकारा है। तुम ही समग्य नहीं न्याय करो, तब बन्देका क्या चारा है। सल घातक पालक बालक का, नृप नीति यही जगसारा है। तुम नीतिनिपुण लोकपती, तुमही लगि दौर हमारा है। श्री. जबसे तुमसे पहिचान भई, तबसे तुमही को माना है। तुमरे दी शासन का स्वामी, हमको सच्चा सरधाना है। जिनको तुमरी शरणागत है, तिनमो जमराज डराना है। यह सुजस तम्हारे सांचे का, सब गावत वेद पुराना है। श्री.
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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