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जैन पूजा पाठ सप्रह
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जगति जीव घमै विन ज्ञान, कीना मोह महाविष पान । तुम सेवा विषनाशक जरी, तिहुँ मुनिजन मिल निश्चय करी ॥ जन्म- जरा मिथ्या मत मूल, जन्म मरण लागे तिहॅ फूल | सो कबहूँ विन भक्त कुठार, कटै नहीं दुःख फल दातार || कल्प सरोवर चित्रा बेल, काम पोरवा नवनिधि मेल । चिन्तामणि पारस पाषान पुण्य पदारथ और महान || ये सब एक जन्म संयोग, किंचित सुखदातार नियोग । त्रिभुवननाथ तुम्हारी सेव, जन्म-जन्म सुखदायक देव || तुम जग बांधव तुम जगतात, अशरणशरण विरद विख्यात । तुम सब जीवन के रखवाल, तुम दाता तुम परम दयाल ॥ तुम पुनीत तुम पुरुष प्रमान, तुम समदर्शी तुम सब जान । जय मुनि-यज्ञ पुरुष परमेश, तुम ब्रह्मा तुम विष्णु महेश ॥ तुम जगभर्त्ता तुम जगजान, स्वामि स्वयम्भू तुम अमलान । तुम बिन तीन कॉल तिहुँ लोय, नाही कारण जीवका होय ॥ यात अत्र करुणानिधि नाथ, तुम सन्मुख हम जोडें हाथ । जबलों निकट होय निर्वान, जंग निवास छूटै दुःखदान ॥ तबलौं तुम चरणांवुज वास, हम उर होय यही अर दास । और न कछु बांछाँ भगवान, है दयालु दीजें वरदान || दोहा - इहिविधि इन्द्रादिक अमर, कर बहु भक्ति विधान । निज कोठे बैठे सकल, प्रभु सन्मुख सुख मान ॥ जीति कर्मरिपु जे भये, केवल लब्धि निवास । सो श्री पार्श्व प्रभु सदा, करो विघ्नघन नाश ॥
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