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जैम पूजा पाठ सप्रह
, विषापहार स्तोत्र भाषा.
दोहा - नमो नाभिनन्दन बली, तत्त्वप्रकाशनहार । तुर्यकाल की आदि में, भये प्रथम अवतार ॥
रोला छन्द
निज आतम में लीन ज्ञानकरि व्यापत सारे। जानत सब व्यापार संग नहिं कछू तिहारे || बहुत काल हो पुनि जरा न देह तिहारी । ऐसे पुरुष पुरान करहु रक्षा जु हमारी ॥ १ ॥ परकरिकें जु अचिन्त्य भार जग को अतिभारो । सो एकाकी भयो वृषभ कीनों निसतारो || करि न सके जोगीन्द्र स्तवन मैं करिहों ताको । भानु प्रकाश न करै दीप तम हरे गुफा को ॥ २ ॥ स्तवन करनको गर्व तज्यो शकी बहु ज्ञानी । मैं नहिं तजों कदापि स्वल्पज्ञानी शुभध्यानी ॥ अधिक अर्थको कहूँ यथा विधि बैठि झरोके ॥ जालान्तर घरि अक्ष भूमिधर को जु विलोकै ॥ ३ ॥ सकल जगतकों देखत अर सबके तुम ज्ञायक । तुमको देखन नाहि नाहि जानत सुखदायक ॥ हो किसाक तुम नाथ और कितनाक बखाने । लाते थुति नहि बनै अशक्ति भये सयानै ॥ ४ ॥
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