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जन पूजा पाठ सग्रह
अनन्तव्रत पूजा
अडिल्ल छन्द। श्रीजिनराज चतुर्दश जग जयकारजी । कर्म नाशि भवतार सु शिवसुख धारजी ।। सौपट ठः ठ. सुवषट् यह उच्चरूँ।
आह्नाननं स्थापन मम सन्निधि करूँ।। ॐ ही श्रीपमाद्यनन्ननायपर्यन्नचतुर्दशजिनदा । अत्र अवतर अवतर मवीपट् । ॐ ह्री श्रीयपमायनन्तनाथर्यन्नचतुदरनिनन्द्रा । अत्र तिष्ठ निठ ठ ठ स्थापन । *ही श्रीकृषभायनन्तनाथपर्यन्तचतुदराजिनन्द्रा · अम्र मम सन्निहितो भव भव वपट् ।
गीता छन्द । गगादि तीर्थको सु जल भर कनकमय भृङ्गार में । चउदश जिनेश्वर चरणयुगपरि धार डारौ सार में ।। श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन पर्यंत पूजों ध्यायके । करि अनन्तव्रत तप कम हनिके लहो शिव सुख जायके॥ ॐ ही श्रीवृषभानन्तनावपर्यन्तचतुर्दशाजनने या तन्मजरामृत्युविनागनाय जल । चन्दन अगर घनसार आदि सुगन्ध द्रव्य घसायके । सहजहि सुगन्ध जिनेन्द्रके पद चर्च होंसुखदायके॥श्रीवृषभ. ॐ ही घाउपभायन-पन पन्नचतुर्दशजिनेन्द्र भ्या समारतापविनाशनाय बन्दन० । तन्दुल अरवण्डित अति सुगन्ध सुमिष्ट लेके कर धरों। राजत तुम चरणन निकट शिरनाय पूजो शुभ बरो॥श्रीवृषभ ॐ ही पभागुन मनायपर्यन्त चतुर्दशजिनेन्द्र न्यो अक्षयपदप्राप्तये अलतः . चम्पा चमेली केतकी पुनि सोगरो शुभ लायके । केवड़ो कमल गुलाब गैंदा जुही माल बनायके ।। श्रीवृषभ
ही धोवृषभाद्यनन्ननाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्र न्यो कामबाण विश्वसनाय पुष्प ।