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जैन पूज पाठ संग्रह
कलधौत-दीपक जडित नाना, भरित गोवृत-मानसों।
अति ज्वलितजगमग-ज्योति जाती, तिमिरनाशनहारसों म० *ही श्रीमन्वादिसप्तर्षिभ्यो दीप निर्वपामोति स्वाहा।।
दिक-चक्र गंधित होत जाकर, धूप दश-अंगी कही ।
सोलाय मन-पत्र-कायशुद्ध, लगाय का सेऊनही ।।मन्वादि० ह्रीं श्रीमन्वादिसमर्पियो धूप निपानीति स्वाहा।
वर दाख सारक अमित प्यारे, मिष्ट उष्ट चुनाय ।
द्रावडी दाडिम चाल पुनी, थाल भर भर लाया ।। मन्वादि० ॐ हीं श्रीमन्वादिसमर्पिय पल निर्बपानीति स्वाहा ।
जल गंध अन्नत पुष्प चतदर, दीप यूप सु लावना ।
फल ललित आठौं द्रव्य-मित्रित, अपं तीजे पारना।। ॐ हो श्रीनन्वादिनप्तर्पियो अनिपासोति स्वाहा ।
जयमाला वद मृपिगजा धम-जहाजा निज-पर-काजा करत भले। करणाके धारी गगन-विहारी दुस-अपहारी भरम दले ॥ काढत जम-मंदा भवि-जन-नाकरतु अनंदा चरणनमें। जो पूजे या मंगल गान फेर न आवे भव-बनमें ॥१॥
ट पक्षरी जय श्रीमनु मुनिराजा महत, स-धावरकी रक्षा करत । जय मिथ्या-तम-नाशक पतंग कल्या-रस-पृरित अग अंग। जय श्रीस्वग्मनु अझलकहप, पद-सेव करत नित अमर-मृप । जय पंच अन जीते महान, तप नपत ढह कपन समानं । जय निचय मत तत्त्वाचे मान, तप-रमातना तनमें प्रकाश । जय विषय-रोधनमोघमान, परणदिके नाशन अचल ध्यान । जर जयहिं समुदर दयाल. लखि उद्रजालवत जगत-जाल । जय तृप्णाहारी रमण राम, निज परणतिने पारो विराम । जय आनन्यन कल्याणहर, फाल्याण परत सनको अनुप । जय मद-नाशन जयदान दम, निमद बिरचत सब करत संव। जर जाहिं विनयलालस अमान, समशत्रुमित्र जानत नमान। जय कृशित-काय तरके प्रभाव. छवि-छटा उड़ति आनद-दाय।