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परिग्रह देख न मूर्छित होई, पंच महाव्रत धारक सोई । महाव्रत ये पांचों खरे हैं, सब तीर्थंकर इनको करे हैं || मनमें विकल्प रंच न होई, मनोगुप्ति मुनि कहिये सोई । वचन अलीक रंच नहिं भारों, वचन गुप्ति सोमुनिवर राखेँ ॥ कायोत्सर्ग परीषद सहि हैं, ता मुनि काय-गुप्ति जिन कहि हैं । पंच समिति अब सुनिये भाई, अर्थ सहित भाखों जिनराई ॥ हाथ चार जब भूमि निहारें, तब मुनि ईर्ष्यापथ पद धारें । मिष्टवचन गुख बोले सोई, भाषा समिति तास मुनि होई ॥ भोजन छयालिस दूपण टारें, सो मुनि एपण शुद्ध विचारै । देखकर पोथी ले अरु धर हैं, सो आदान-निक्षेपण वर हैं | मल-मूत्र एकांत जु डारें, परतिष्ठापन समिति संभारे । यह सब अंग उनतीस कहे हैं, जिन भाखे गणधरने गहे हैं ॥ आठ-आठ-तेरहविधि जानों, दर्शन - ज्ञान- चरित्र सु ठानों । तांत शिवपुर पहुँचो जाई, रत्नत्रयकी यह विधि भाई ॥ रत्नत्रय पूरण जय होई, क्षमा क्षमा करियो सब कोई । चैत माघ भाटों त्रय बारा, चमा क्षमा हम उरगें धारा ॥ दाहा यह चमावणी आरती, पढ़ें सुनै जो कोय ।
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कहे "मल्ल" सरधा करो, मुक्ति-श्री-फल होय ॥२२॥ ॐ ह्रीं अष्टागसम्यग्दर्शनाय अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय त्रयोदश विधसम्यक्चारित्राय रत्नत्रयाय अनर्घ्यपदप्राप्तये महार्घ । सोरठा दोष न गहियो कोय, गुण गह पढिये भावसीं । भूल चूक जो होय, अर्थ विचारि जु शोधियो | [ इत्याशीर्वादः । परिपुप्पाञ्जलि क्षिपामि ]
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