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________________ लियात महात,छाय रह्योलम,निजभव परणति लहि सूझै। इहकारण पाले दीए सजाके, थाल धरा, हल पूजै वसु० १ . ही मोहान्धकारविनाशनाय दीप निवपामीति स्वाहा । दागन्ध कुटाकै, धू, बना, निजकर लेक, परि ज्वाला। तसुधूल उड़ाई, दशदिश छाई.बहु महकाई.अति आला ॥वसु० ॐ हौं अधर्मदहनार धूप निर्वपामीति स्वाहा। हादान छुहारे, श्रीफल धारे, पिरता प्यारे. दाखवरं । इन आदिलोलखिनिरदोखे,थाल एजोले,भेटघावसु० - मोक्षफलप्राप्तये फल निपानीति स्वाहा । जल चंदन संदुलहुलुहरू लेवजा दी धूप फल पाल रवौं । जयघोष कराऊबीन बजाऊँ,अर्घ चढ़ाऊँ, खूब नवौं । वसु० ___ हो अनयंपदप्राप्त अध्ये निवपानीति स्वाहा । प्रत्येक अर्घ चौपाई। अधोलोकजिन आनललाख, तात कोडिअरु बहत्तरिलाख। श्रीजितवन महा छवि देइ, ते सब पूजौं क्लुविधि लेइ । ॐ ही अधोलोकनम्बन्धी सात कोटि वहत्तर लाख श्रीअकृत्रिम जिनचेत्यालयेभ्योऽ० । सध्यलोक जिन-खन्दिर ठाठ, साढ़े चार शतक अरु आठ । ते सब पूजौं अर्थ बढ़ाय, सनवरतन त्रयजोग मिलाय ।। ॐ हीं मध्यलोक सन्ब्न्धी चारसौं अगवन श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्थ निर्बपामीति स्वाहा । अडिल्ल छन्द अलोकके माहिं भवन जिन जानिये । लाल चौराली लहल सत्यानक मानिये ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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