SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 110 40 I जल सुचन्दन अक्षत पुष्प चरु ले धर दीप अरु धूप फल अर्घ पूजा करें ।। पाण्डुका और नीराञ्जना वारती || मचिय० ॥ १० ॥ कियो सिंगार सब अंग सम्मानकौ ' आनि मातहि दियो फेरि जिनराजको ॥ तृप्त नहि हो हग रूप को नीहारती ॥ सचिय० ॥ ११ ॥ ताल मृदङ्ग ध्वनि नप्त स्वर वाजहीं । २३३ नृत्य ताण्डव करत इन्द्र अति छाजहीं ॥ करन उत्साह सौ जिन सुपग ढारती || सचिय० ॥ १२ ॥ भव्यजन लोक जन्ममहोत्सव करें। आगिले जन्म के सकल पातक हरें ॥ भक्ति जिनराज की पार उतारती । नचिय सुरपति सहित करहिं जिन आरती || १३ ॥ घत्ता - जिनवर वर माता, माननीया सुरेन्द्रेः । ल जयति जिनराजा "लालचन्द्र" विनोदी | ' ॐ गिनिनिवृपमा दितीर्थहरेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अप्यं इत्याशीर्वाद नव तिलक पूजा करनेवाले को प्रथम नय तिलक करना चाहिये । शिखा शीश की जानि, ललाट सु लीजिये । भुजा गनि लीजिये ॥ सरस शुभ कीजिये । तिलक नव कीजिये ॥१॥ 1 कण्ठ, हृदय अरु कान, कूंख, हाथ अरु नाभि, तव जिनवर को जजो,
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy