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जैन पूजा पाठ सप्रह
ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र स्तवन सत्पुरुचित्त चमत्काराय श्री आदि परमेश्वराय अघ० । ॐ ह्रीं जिनपूजनस्तवन कथाश्रवणेन समस्त पाप विनाशकाय जगत्त्रय भव्यजीव विघ्ननाशसमर्थाय च श्री आदि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं त्रैलोक्य गुणमण्डितसमस्तोपमासहिताय श्री आदि परमेश्वराय अ०] ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र दर्शनेन अनन्त भव सचित अघसमूह विनाशकाय श्री प्रथम जिनेन्द्राय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ११॥
ॐ ह्रीं त्रिभुवन शान्त स्वरूपाय त्रिभुबन तिलकाय मानाय श्री आदि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १२ ॥
त्रैलोक्यविजय रूप अतिशय अनन्तचन्द्र तेजमित सदातेज पूजमानाय
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श्री आदि परमेश्वराय अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १३ ॥
ॐ ह्रीं शुभगुणातिशयरूप त्रिभुवनजीत जिनेन्द्र गुण बिराजमानाय श्री प्रथम जिनेन्द्राय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १४॥
ॐ ह्रीं मेरुचन्द्र अचलशील शिरोमणि व्रतोद्यराजमण्डित चतुषि धवनिता विरहित शीलसमुद्राय श्री आदि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १५ ॥
ॐ ह्रीं धूम्रस्नेह वातादि विनर हिताय त्रैलोक्य परम केवल दीपकाय श्री प्रथम जिनेन्द्राय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १६ ॥
ॐ ह्रीं राहु चन्द्र पूजित कर्म प्रकृति क्षयति निवारण ज्योतिरूप लोकद्वयावलोकि सदोदयादि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १७ ॥
ॐ ह्रीं नित्योदयादि रूप राहुना अप्रसिताय त्रिभुवन सर्व कला सहित विराजमानाय श्री आदि परमेश्वराय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ १८ ॥
ॐ ह्रीं चन्द्र सूर्योदयास्त रजनी दिवस रहित परम केबलोदय सदादीति विराजमानाय श्री आदि देवाय आदि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १९ ॥
ॐ ह्रीं हरि हरादि ज्ञानसहिताय सर्वज्ञ परम ज्योति केवलज्ञान सहिताब " श्री आदि परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ २० ॥
ॐ ह्रीं त्रिभुवन मनमोहन जिनेन्द्ररूप अन्य दृष्टान्त रहित परम बोध मण्डिता श्री आदि जिनाय परमेश्वराय अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ २१ ॥
ॐ ह्रीं त्रिभुवन वनितोपमारहित श्री जिनबर माताजनित जिनेन्द्र पूर्व दिग् मास्कर केवलज्ञान भास्कराय श्री आदिब्रह्म जिनाय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा ॥ २२ ॥