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अध जयमाला। दोहा-श्रावण शुक्न सु पूर्णिमा, मुनि रक्षा दिन जान । रक्षक विष्णुकुमार मुनि, तिन जयमाल बखान ।।
चाल-चन्द मुजगप्रयात। मी विष्णु देवा करू चर्ण सेवा, हरी जन की बाधा सुनो टेर देवा। गनपुर पधारे महा मुफ्याफारी, धरो रूप वामन मु मन में विचारी।। गरे पाम लिये हुआ यो प्रसन्मा. जो मांगो सो पावो दिया ये वचना । मुनि नीन सग मागी भरनी मुतार्प, नई ताने ततलिन सुनहि ढील थापै।। कर घिमिया मुनि नु काया बढ़ाई, जगह सारी लेली सु डग दोके माही। धरी नोमरी सग बली पीट माही. सु मांगी क्षमा तष यली ने बनाई ।। बल की मु पृष्टि करी सुयफारी, मरव अग्नि क्षण में भई भरम सारी। टरेस उपमग श्री विष्णु जी से, भई जै जैकारा सरव नग्रही से ।।
चौपाई। फिर राजा के हुक्म प्रमाण, रक्षामन्धन वधी सुजान । मुनिवर घर-घर फियो विहार, श्रावक जन तिन दियो अहार ।। जा घर मुनि नदि आये कोय, निज दरवाजे चित्र सु लोय । ग्यापन कर तिन दियो अहार, फिर सय भोजन कियो सम्हार ।। तव से नाम मटना मार, जन-धर्म का है त्योहार । शुद्ध पिया कर मानो जीव, जासों धर्म बढे सु अतीव ।। धर्म पदारय जग में भार, धर्म पिना झूठो ससार । भावण शुष्ठ पूर्णिमा जब होय, यह दो पूनन कीजै लोय ॥