________________
१६८
जन पूजा पाठ मप्रह
चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा, उपज्यो केवलज्ञान । भवसागर से पार हो, दियो भव्य जन ज्ञान || श्री पद्म० ॐ ही चैत शुक्ल पूर्णिमा केवलज्ञान प्राप्ताय श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय अध्य० ॥ ४ ॥ फाल्गुन कृष्ण सु चौथ को, मोक्ष गये भगवान । इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजौ धर ध्यान ॥ श्री पद्म० ॐ ही फाल्गुन कृष्ण चौथ मोक्षमङ्गल प्राप्ताय श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय प्रध्य० ॥ ५ ॥
जयमाला। दोहा-चौतीसो अतिशय सहित, बाडा के भगवान । जयमाला श्री पद्म की, गाऊँ सुखद महान ।।
पद्धडो छन्द। जय पद्मनाथ परमात्म देव, जिनकी करते सुर चरण सेव । जय पद्म-पद्म प्रभु तन रसाल, जय जय करते मुनिमन विशाल । कोशाम्बो मे तुम जन्म लीन, वाडा मे वह अतिशय करीन । एक जाट पुत्र ने जमी खोद, पाया तुमको होकर समोद ॥ सुर कर हर्षित हो भविक वृन्द, आकर पूजा की दुःख निकन्द । करते दुःखियो का दुःख दूर, हो नष्ट प्रेत बाधा जरूर ॥ डाकिन साकिन सब होय चूर्ण, अन्धे हो जाते नेत्र पूर्ण । श्रीपाल सेठ अञ्जन सु चोर, तारे तुमने उनको विभोर ।। अरु नकुल सर्प सीता समेत, तारे तुमने निज भक्त हेत। हे सङ्कट मोचन भक्त पाल, हमको भी तारो गुण विशाल ॥ विनती करता हूँ बार-बार, होवे मेरा दुःख क्षार-क्षार । मीना गूजर सब जाट जैन, आकर पूजे कर तृप्त नेन । मन वच तन से पूजै सुजोय, पावे वे नर-शिव सुख जु सोय । ऐसी महिमा तेरी दयाल, अब हम पर भी होवो कृपाल ॥ ॐ ही श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय पुर्णाऱ्या०1४॥