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जैन पूजा पाठ सप्रह
अडिल्ल छन् ।
आदि और वन्दन
सुर नर हरि इन भव सागर से तिरै नही भव में जन्म जन्म के पाप सकल छिन मे सुफल होय तिन जन्म शिखर दरशन
करै ।
परै ॥
ट
करे ॥ ६ ॥
स्थापना, अडिल छन्द |
गिरि सम्मेद तै बीस जिनेश्वर शिव गये । और असंख्ये मुनी तहां ते सिध भये ॥ बन्दू मन वच काय नम शिर नायकै ! नमूं तिष्ठो श्रीमहाराज सबै इत आयकै ॥ २ ॥ दोहा —— श्रीसम्मेद शिखर सदा पूजू मन वच काय ।
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हरत चतुरगति दुःखको मन वांछित फलदाय ॥ २ ॥
ह्री श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेती श्री बीस तोर्घङ्कर और प्रसस्यात मुनि मुक्ति पधारे, तिनके चरणारविन्द की पूजा श्रत्रावतरावतर सर्वोौषट् श्रह्मननं । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । अत्र मम सत्रिहितो भव भव वषट् सत्रिधापन । अथाष्टक, गीता छन्द |
सोहन झारी रतन जड़िये मांहि गंगा जल भरो जिनराज चरण चढ़ाय भविजन जन्म मृत्यु जरा हरौ ॥ संसार उदधि उबारने को लीजिये सुध भावसो । सम्मैद गिरपर बीस जिन मुनि पूज हरष उछावसो ॥ २ ॥ ॐ ह्री श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेतो बीस तीर्थङ्करादि असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे, जन्ममृत्युरोगविनाशनाय जल० ॥ १ ॥
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