SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० छप्पन दिन छद्मस्थ रहे जिन चार घातिया चर । ज्ञान लहि सर्व लखायोजी जिनके ॥ मुण० ॥ समवशरण की महिमा राजे श्रीमण्डप सुखकार । रतन सिंहासन ऊपर प्रभुजी पद्मासन निरधार | तीन छत्र सिर ऊपर राजे चौसठि चामर सार || जिनके सन्मुस ठाउ इन्द्र नरेन्द्रजी । नभ में दुन्दुभि की धुनि भारी, वर्षे फूल सुगन्ध अपारी । जिनके सम्मुख ठाडे इन्द्र नरेन्द्रजी । वृक्ष अशोक शोक सब नाशे वाणी दिव्य प्रकाश । जैन पूजा पाठ सग्रह 1 स्वहित वृप निज निधि पावैजी || जिनके० ॥ श्री गिरिनार शिसरते स्वामी, पायो पद, निर्वाण | कर्मकलङ्क रहित अविनाशी सिद्ध भये भगवान । पञ्चकल्याणक पूजा कीनी सकल सुरासुर आन || अपनो विरद निवाहो दीन दयालजी । मोकों दीजे निजकी माया, कारज कीजे मन ललचाया । अपनो विरढ़ निवाहो दीन दयालजी || विनय जिनेश्वर की सुन स्वामी, नेमीश्वर महाराज । हृदय मे तुम पद ध्याऊजी जिनके गुण गावें सुरनर शेपजी || दोहा - चरणन शीश नवाय के, पूजा कर गुन गाय । अरज करूँ यह एक मैं, भव-भव होहु सहाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनन्द्राय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा । अडिल छन्द | वर्तमान जिनराय भरत के जानिये, • पञ्चकल्याणक मानि गये शिवथानिये । जो नर मनवचकाय प्रमु पूजें सही, सो नर दिवसुख पाय लहै अष्टम मही ॥ इत्याशीर्वाद, परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy