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________________ जैन पूजा पाठ संग्रह मणिमय दीप अमोलक लेके, रतन रकेवी मे धर लाय । मोहमहातम नाशक प्रभुके, चरणाम्बुज देत चढ़ाय ॥ वाल्ह ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय मोहधिकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाग ॥ ६ ॥ कृष्णागरु कर्पूर मिलाकर, धूप सुगन्ध मनोहर आन । कर्मकलंक निवारक प्रभुके, चरणकमल को पूज न ॥वाल ११८ ॐ ह्री श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकमदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, एला केला आदि महान । मुक्ति श्रीफलदायक प्रभुके, चरणाम्बुज पूर्जे गुणखान ॥ बाल ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तचे फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जलफल द्रव्य मिलाय गाय गुण, रत्नथार भरिये सुखदान । अष्टकर्म के नाशक प्रभुको पूजौं निजगुण दायक जान ॥ वाल ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये ययं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ पंचकल्याणक चाल छन्द । छठि कार्तिक सित सुखदाई, गर्भागम मंगल गाई इन्द्रादिक पूज रचाई, हम पूर्जे अर्ध चढ़ाई ॥ ॐ ह्रीं कार्तिशुक्रषष्ट्यां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अध्यं । सित श्रावण छठि शुभ जानौं, जन्मे जिनराज सहानो ! पितु समुद्रविजय सुख पायो, जिनको हम शीश नवायो ॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्रषयो जन्ममलप्राप्ताय श्रीने मिनापजिनेन्द्रायाअघ्यं । श्रावण सुदि छठि शुभ जानों, तजि राज महानत ठानों शिव नारि हर्ष वह कीनों, हम तिनके पद चित दीनों ॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ट्या तपोमङ्गलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अध्यं । सित एके आश्विन भाई, चउघाति हने दुःखदाई । वर केवलज्ञान सुलीनों, जिनके पद में चित दीनों ॥ ॐ आश्विन शुक्लप्रतिपदायां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्यं v
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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