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जैन पूजा पाठ सप्रह
जनम जेठ चतुर्दशि श्याम है, सकल इन्द्र सु आगत धाम है । गजपुरै गज साजि सबै त, गिरि जजे इत में जजि हों अवै । ॐ ही ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्या जन्ममगलप्राप्ताय श्रीशान्तिनायजिनेन्द्राय अर्घ ० । भन शरीर सुभोग असार हैं, इमि विचार तवं तप धार हैं। भ्रमर चौदश जेठ सुहावनी, धरम-हेत जजों गुन-पावनी । ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्या निष्क्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीशान्तिजिनेन्द्राय अर्घ ० । शुकल पौष दशैं सुख-राश है, परम केवल-ज्ञान प्रकाश है । भव-समुद्र-उधारन देवकी, हम करें नित मंगल सेवकी ।। ॐ ही पौषशुक्लदशम्या केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अब ० । असित चौदश जेठ हने अरी, सिरि ससेद थकी शिव-ती वरी। सकल-इन्द्र जजै तित आइक, हम जर्ज इत मस्तक नाइक॥ ॐ हीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दश्या मोक्षमगलप्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ ० ।
जयमाला शान्ति शान्ति-गुन-मंडिते सदा, जाहि ध्यावत सुपंडिते सदा । मैं तिन्हें भगत-मंडिते सदा, पूजि हों कलुष-हडिते सदा ॥ मोक्ष-हेत तुम ही दयाल हो, हे जिनेश गुन-रन-माल हो । मैं अवै सुगुन-दाम ही धरों, ध्यावते तुरित मुक्ति-ती वरों ।।
पद्धरि छन्द । जय शान्तिनाथ चिन्द्र पराज, भव-सागरमें अद्भुत जहाज । तुम तजि सरवारथसिद्ध थान, सरवारथ-जुत गजपुर महान । तित जनम लियौ आनंद धार, हरि ततछिन आयो राज-द्वार । इन्द्रानी जाय प्रस्त-थान. तमको करमें ले हरष मान ।।