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जैन पूजा पाठ सग्रह
जब तक जगमें वास तवतक हिरदे मेरे ।
कहत जिनेश्वरदास शरण गहों मैं तेरे ॥१५॥
दोहा - जग जयवन्ते होहु जिन, भरौ हमारी आस । जय लक्ष्मी जिन दीजिये, कहत जिनेश्वर दास ॥
ॐ हो श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्दाय पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा ।
अडिल छन्द ।
वर्तमान जिनराय भरत के जानिये ।
पञ्चकल्याणक मानि गये शिवधानिये ॥
जो नर मन वच काय प्रभू पूजै सही ।
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सो नर दिव सुख पाय लहै अष्टम मही ॥
इत्याशीर्वाद पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
श्रद्धा
जो मनुष्य युद्धिपूर्वक श्रद्धागुण को अपनायेगा, उसे कोई भी शक्ति संसार में नहीं रोक सकती ।
कुछ भी करो श्रद्धा न छोड़ो । श्रद्धा हो संसारातीत अवस्था को प्राप्ति में सहायक होती है। श्रद्धा बिना आत्मतत्व की उपलब्धि नहीं होती ।
• जिन जीवों को सम्यग्दर्शन हो गया है, उन्हें माता - असाता कर्म का
उदम चल नहीं करता ।
-'वर्णी वाणी' से