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जन पूजा पास
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समवशरन महिमा हरि कीनी दीनी दृष्टि चरण निजआना ऐसे चंद्रनाथ जिनवरको, अर्घ चढ़ाय करूं नित ध्यान।।
ही फाल्गुन गममन्यां फेलतानप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रमधिनेन्द्राय अघ । सातें बदि फाल्गुनके महिना, संमेदाचल शृङ्ग महान । ललितकूट ऊपर जगपतिने, पायौ आतम शिव कल्यान॥ सुरसुरेश मिलि पूज रचाई, गायो गुण हर्पित जिय ठान। सुगुरु समन्त भद्रके स्वामी. देहु जिनेश्वर को सतज्ञान ।। ही फागुनमाया नाक्षर
न्याय धीनन्द्रपानन्दाय अन ।
जरनाला
दोहा-अष्टम क्षितिपति तुम धनी, अष्टम तीरथराय । अष्टम पृथ्वी कारने, न अङ्ग वसु नाय ॥ १॥
चाल- अहो जगतगुरु' को। अहो चन्द्र जिनदेव तुम जगनायक स्वामी ।
अप्टम तीरथगज, हो तुम अन्तरयामी ॥ १ ॥ लोकालोक मझार, जड चतन गुणधारी।
द्रव्य छह अनिवार पर्यय शक्ति अपारी ।। २ ।। तिहिं सबको इकबार जार्ने ज्ञान अनन्ता।
ऐसो ही सुखकार दर्शन है भगवन्ता ।। ३ ।। तीनलोक तिहुँकाल ज्ञायक देव कहावी।
निरवाधा मुखमार तिहिं शिवथान रहावौ ॥४॥