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________________ विषयको बहुत सावधानीसे निबद्ध किया गया है। मूल ग्रन्यकर्ता तो इस युगमे श्री १००८ भगवान् महावीर हो हैं, उनको दिव्यवाणोके अनुसार गौतम गणधर स्वामोने द्वादशाग रूप रचनाकी और कालक्रमसे आचार्योंकी गुरु-शिष्य परम्परामे मौखिक रूपमे प्रदत्त इस उपदेशमे क्षीणता आतो रहो, तब अंग पूर्व के अंशमात्र ज्ञानको आचार्य धरसेनसे उनके दो शिष्योने प्राप्तकर, जिनके प्रख्यातनाम भूतिबनी और पुष्पदन्त हैं, उसे पुस्तकारूढ किया। इसी परम्परामे अनेक जैनाचार्योंको अनेक कृतियां ग्रन्थके रूपमे उपलब्ध हैं। उसो जिनागमकी समागत परम्पराको सुरक्षित रखनेका यह डॉ० पन्नालालजोका सुप्रयास है। सस्कृत-भाषामे गद्य और विशेषकर पद्य-लेखन कार्यमे वर्तमानके विद्वत्वर्गमे डॉ. पन्नालाल जो अग्रणी सम्यग-दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है और इसके विपरीत मिथ्यादर्शन ज्ञान चारित्र हो संसारको पद्धति ( मार्ग) है। यह बात रत्नकरण्डश्रावकाचारमे अपने प्रारम्भिक कथनमे हो पूज्य आचार्य समन्तमद्र स्वामो लिख गये हैं। ___ जोवके कल्याणके लिए हो सम्यग्-दर्शनादि तोनका वर्णन है। इन्हे जिनागममे रत्नत्रय कहा गया है । यद्यपि ये तीनो आत्म-गुण है । जब कि रत्न, जिन्हे हीरा, पन्ना, मणि, माणिक्य आदि नामोसे कहा जाता है, जड, अचेतन पदार्थ है और इस दष्टिसे सचेतनके श्रेष्ठ गुणोको अचेतन रत्लोके साथ जो यथार्थमे एक भिन्न प्रकारके पत्थरके टुकड़े है-समता मिलाना संगत प्रतीत नही होता, फिर आचार्योंने उन तोनोको रत्नकी उपमा दी है, ऐसा क्यो? यह एक प्रश्न तो है । विचार करनेपर यह समझमे आता है कि यह अज्ञानी ससारी प्राणो निजको महत्ताको भूलकर इन अचेतन रत्नोको सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा इस मोही (मूढ ) को इसकी भाषामे ही इन तीनो आत्म-गुणो की महत्ता समझानी होगो इसके बिना यह उनको कीमत न करेगा, इसलिए रत्नोके साथ समता न होते हुए भो समता मिलाई है। यह बात सुप्रसिद्ध है और प्रत्येक प्राणोके अनुभवगोचर है कि यह संसार दुःखमय है और सुखको प्रक्रियाके विरुद्ध है। अत सभी मत-मतान्तरो मे मोक्ष निर्वाण-श्रेय परमात्म-प्राप्ति आदिके नामपर संसारके कारण-विषय-कषायोको छोड़कर साधना करने वाले साधुपद
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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