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षष्ठ प्रकाश का माना गया है और विनय आदि प्रभेदोंसे चार प्रकारका भी स्वीकृत किया गया है ।। ६६-६२॥
विशेषार्थ-'मूलाचारके आधारपर दश भेद निम्न प्रकार हैं१ अनागत, २ अतिक्रान्त, ३ कोटिसहित, ४. निखण्डित, ५. साकार, ६ अनाकार, ७. परिणामगत, ८ अपरिशेष, ६. अध्वानगत और १०. सहेतुक । आचारवृत्तिके अनुसार इनके संक्षिप्त लक्षण इस प्रकार हैं
१. अनागत प्रत्याख्यान-भविष्यत् कालमें किये जाने वाले उपवास आदिको पहले कर लेना, जैसे चतुर्दशीका उपवास त्रयोदशोको कर लेना, यह अनागत प्रत्याख्यान है।
२. भतिक्रान्त प्रत्याख्यान-अतीत कालमे किये जानेवाले उपवास आदिको आगे करना, जैसे चतुर्दशोका उपवास अमावस्या या पूर्णिमा आदिमे करना, यह अतिक्रान्त प्रत्याख्यान है।
३. कोटिसहित प्रत्याख्यान-कोटि सहित उपवासको कोटि सहित प्रत्याख्यान कहते हैं, जैसे-प्राताकाल यदि शक्ति रहेगी तो उपवास करूंगा अन्यथा नही।
४ निजण्डित प्रत्याख्यान-पाक्षिक आदिमें अवश्य करने योग्य उपवासका करना निखण्डित प्रत्याख्यान है।
५ साकार प्रत्याख्यान-भेदसहित उपवास करनेको साकार प्रत्याख्यान कहते है, जैसे-सर्वतोभद्र तथा कनकावली आदि व्रतोकी विधि सम्पन्न करते हुए उपवास करना।
६ अनाकार प्रत्याख्यान-तिथि आदिकी अपेक्षाके बिना स्वेच्छासे कभी भी उपवास करना अनाकार प्रत्याख्यान है।
७. परिमाणगत प्रत्याख्यान-वेला तेला आदि प्रमाणको लिये हुए उपवास करना परिमाणगत प्रत्याख्यान है।
८. अपरिशेष प्रत्याख्यान-जीवनपर्यन्तके लिये चतुर्विध आहारका त्याग करना अपरिशेष प्रत्याख्यान है।
९. अध्यानगत प्रत्याख्यान-मार्ग विषयक प्रत्याख्यानको अध्वानगत प्रत्याख्यान कहते हैं, जैसे-इस जङ्गल और नदी आदिसे बाहर निकलने तक उपवास करना।
१०. सहेतुक प्रत्याख्यान-किसी हेतुसे उपवास करना सहेतुक १. गाथा, ६४०।