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परम ज्योति महावीर
यों रहती उनकी सेवा में, वह दिक्कुमारियों की टोली। जिनकी हर गर्भ-शुश्रूषा से, प्रमुदित रहतीं रानी भोली ।।
वे बिना परिश्रम त्रुिभुवन पति-- का भार उठाती जाती थीं । निज कुक्षि मध्य युग स्रष्टा काश्राकार बनाती जातों थीं।
नव मास उदर में रखना था, उन नव-युग भाग्य विधाता को । उन जैसा यह सौभाग्य पुनः कब मिला किसी भी माता को ।।