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चुपचाप
बैठ कर
सुनते थे
प्रभु का पावन उपदेश वही । नर पशु के विविध खिलौने भी रखने का है उद्देश यही ॥
वहाँ
देवों ने बरसा रत्न प्रभु का निर्वाण मनाया था । निर्वाण भूमि को भी उनने सोल्लास विशेष सजाया था ।
इस
कारण खील बताशे ही बाँटा करते नर-नारी अब 1 औ' चित्रों से चित्रित करतेहैं गृह की भित्ति
टारी व ॥
परम ज्योति महावीर
उस दिन से 'पावा' के रज कण शुभ तीर्थ समान पवित्र लगे ।
रख गयीं मन्दिरों में प्रतिमा भवनों में उनके चित्र टँगे ||
अनूप
स्तूप,
संस्मारक रूप 'पावा' में गया बनाया था । उनकी संस्मृति में राज्यों में सिक्का भी गया चलाया था ।।