________________
५६४
परम ज्योति महावीर केवल न नगर ही जङ्गल भी, गॅजे थे मङ्गल गानों से। थीं दशों दिशाएँ व्याप्त हुई, प्रभु-संस्तुति की मृदु तानों से ॥
चारों वर्गों की जनता ने, थे दीप जलाये निज घर में । तब से हर बर्ष मनाते हैं
जन दीपावलि भारत भर में ॥ 'काशी' 'कौशल' के अहारह भूपों ने दीप जलाये थे। 'लिच्छवी' मल्ल गणतन्त्र संघभी' दीप जला हर्षाये थे॥
यों राष्ट्र पर्व यह भारत में तब से होता था रहा चला। हर वर्ष 'वीर' की संस्मृति जन करते सजीव शुभ दीप जला ॥
कार्तिक कृष्णा की चतुर्दशीको कर्कट-कर्म हटाये थे । श्री 'वीर' कर्म मल से विमुक्त हो शुद्ध, सिद्ध पद पाये थे।