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परम ज्योति महावीर
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वाणिज्य ग्राम में तेइसौं चौमासा करने टहर गये । तदनन्तर 'ब्राह्मण कुण्ड' गये, फिर वे 'कौशाम्बी' नगर गये ॥
पश्चात् 'राजगृह' पहुँच गये, धर्मामृत धार बहाते वे । निज शक्त्यनुसार सभी जनको
बत अङ्गीकार कराते वे ॥ चौबिसवाँ वर्षावास यहींपर कर पश्चात् विहार किया। 'कोणिक' की राजपुरी 'चम्पा'में श्राकर धर्म प्रचार किया ।।
राजा 'कोणिक' निज प्रजा सहित उस धर्म-सभा में आये थे। धर्मोपदेश सुन बहुतों ने मुनियों के व्रत अपनाये थे।
"चम्पा' से चलकर प्रभुवर ने विहरण 'विदेह' की ओर किया । "पथ में 'काकन्दी' में रुककर भक्तों को हर्ष बिभोर किया ।