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अठारहवाँ सर्ग
रच यज्ञ 'सोमिलाचार्य' विप्र
ने बहु विद्वान जुटाये थे ।
द्विज,
वेदाङ्ग विज्ञ थे जितने वे सब यज्ञार्थ बुलाये थे ||
अधिकांश द्विजों के सँग उनकेप्रिय शिष्यों की भी टोली थी । अतएव अतिथियों की संख्या उस समय हजारों हो ली थी ॥
ग्यारह तो ऐसे थे, जिनकी -
प्रज्ञा का नहीं
ठिकाना था।
उत्सव की पूर्ण
सफलता का आना था ||
कारण उनका ही
उनने इस अपनी
विद्वत्ता
की छाप सभी पर डाली थी । वास्तव में विषय-विवेचन की, उन सबको रीति निराली थी ।
था बजा 'मध्यमा' में यद्यपि उनकी इस प्रतिभा का डङ्का । पर उन सबके भी अन्तस् में थी एक एक रहती
शंका ||
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