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परम ज्योति महावीर
वे रात खण्डहर में ठहरे, प्रस्थान किया फिर प्रात समय । अविलम्ब 'पत्तकालय' पहुँचे, ईर्या से चलते हुये सदय ।।
तदनन्तर सत्वर आगे कोचल पहुँचे ग्राम 'कुमारा' वे । जनता के श्रद्धापात्र यहाँ
भी बने गुणों के द्वारा वे ।। पश्चात् वहाँ से कर विहार, पहुँचे 'चोराक' यशस्वी वे।
औ' यहाँ गुप्तचर समझ लियेथे गये महान् तपस्वी वे।।
वस्तुस्थिति किन्तु समझते ही, सम्मान हुवा उन त्यागी का । फिर नहीं किसी ने रोका पथ, उन जग से पूर्ण विरागी का ।।
उनने कुछ दिन रुक वहाँ 'पृष्ठचम्पा' की ओर प्रयाण किया । कर चौथा वर्षावास वहीं, निज आत्मा का कल्याण किया ।