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अतएव कहीं रुकते न अधिक, हर ग्राम शीघ्र ही तजते थे ।
प्रायः जा विजन तपोवन में, वे 'सोऽहं ' 'सोऽहं'
भजते थे ॥
यदि विघ्न्न
पारणा में श्राता, सन्ताप न थे !
करे,
तो भी करते कोई कितना उपसर्ग पर देते वे अभिशाप न थे ।।
इससे कुछ दुष्ट अकारण ही, उनको दिन रात सताते थे । कुछ तप से उन्हें डिगाने को सम्मुख उत्पात मचाते थे !!
परम ज्योति महावीर
पर किंचित् कुपित न होते थे, वे करुणा के अवतार कभी श्रौ' पास न आने देते थे, वे कोई शिथिलाचार कभी ॥.
तो प्रमाद
उनमें कोई भी होता था कभी प्रतीत नहीं । उनका क्षण मात्र असंयम में होता था नहीं व्यतीत कभी ॥