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तेरहवाँ सर्ग
श्रतएव अलौकिक दृश्य यहाँ, उस दिन दिखलायी देता था । सुख भोग त्याग पर तुला हुवा, वह योग-मार्ग का नेता था।
यह जान वन्दना करने को,
आये लौकान्तिक देव वहाँ । कर वन्दन 'त्रिशला नन्दन' का वे बौले यों स्वयमेव वहाँ ।।
"था अभी आपकी सत्ता से, यह राजभवन ही धन्य प्रभो । अब किन्तु आपको पाकर होजायेगा धन्य अरण्य प्रभो ॥
क्षयशील विनश्वर अम्बर ही थे अब तक नव परिधान विभो । अब अक्षय अम्बर-अम्बर से होवेंगे शोभावान विभो ।।
जब आप त्याग कर चल देंगे, • यह जन्म भूमि का धाम प्रभो । तब नहीं रोक भी पायेगा, यह 'कुण्ड' नाम का ग्राम प्रभो ।।