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परम ज्योति महावीर
कह उठे-"न लो यह राज्य किन्तु, सोचो पुनरपि इस निश्चय पर । बस, एक बार दो और ध्यान, मेरे कहने के श्राशय पर ।।
सोचो, यदि तुम वन चले गये, माँ नित्य भिगोयेंगी अञ्चल । कारण, बस तुम ही हो इसकी--
इस वृद्धावस्था के सम्बल ॥ इसका तुम पर है मोह अधिक, इसको पीड़ा पहुँचायो मत । बस, सोच दशा भर इसकी ही, तुम राज भवन से जाअो मत ॥"
हो पिता न सुत के अन्तस् को-- उनने अब तक पहिचाना था। अब तक न 'वीर' की हिमगिरि सी--
दृढ़ता को उनने जाना था ।। सम्भवतः इस ही कारण से इन शब्दों का उच्चार किया। उत्तर में 'सन्मति' ने यो फिर सूचित अपना उद्गार किया ।।