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अभिराम अखाड़े मध्य कहीं, बलशाली मल्ल उतरते थे । कुछ तो व्यायाम दिखाते थे, कुछ मुष्टि युद्ध भी करते थे ।
नव नृत्य वानरी भालू के, दिखलाते कहीं मदारी थे । जिनको अवलोक कुतूहल से बच्चे भरते किलकारी थे |
परिहास प्रवीण विदूषक निज, प्रहसन भी कहीं दिखाते थे । दर्शक जिनकी लीलाओं से, हँसते हँसते थक जाते थे |
परम ज्योति महाबीर
हो रही कहीं थी धर्म कथा, होते थे सत् उपदेश कहीं ।
हो रही कहीं थीं शास्त्र सभा, होते थे पाठ
विशेष
कहीं ॥
हो रही कहीं थी जिन पूजा, होते थे विविध विधान कहीं । जा रहे पढ़े थे स्तवन कहीं, होते थे जिन गुण गान कहीं ।