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महाराज एवं अन्य जैन मुनियों के साथ भी अभद्रता की घटनायें हुईं। इन घटनाओं ने जैनियों को भयभीत कर दिया। जिससे क्षेत्र पर यात्रियों की संख्या निरन्तर कम होने लगी । और गिरनार क्षेत्र का सत्व संकट में पड़ गया ।
सत्य पुनर्स्थापना सन् 1980 में आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज संघ सहित कन्याकुमारी से पदयात्रा करते हुए गिरनार आये। गिरनार की तत्कालीन परिस्थितियों ने मुनि-हृदय को व्यथित कर दिया। उन्होंने तभी संकल्प किया- 'गिरनार क्षेत्र को जैन धर्मावलम्बियों के लिये निरापद बनाऊंगा तथा देश में गिरनार क्षेत्र की प्रभावना करूंगा ।
आचार्य श्री के सतत् समर्पित प्रयास का ही परिणाम है कि अब गिरनार वन्दना करने जाने वाले बन्धुओं को कोई उत्पीड़न नहीं कर सकता। आचार्य श्री की सत्प्रेरणा से चौबीस तीर्थंकरों के निर्वाण दिवस पर स्थानीय दिगम्बर जैन गुरुकुल के छात्रागण इन्द्र वेशभूषा में निर्वाण लाडू चढ़ाने पांचवीं टोंक तक जाते हैं और भक्ति भाव से निर्वाण महोत्सव मनाते हैं । आचार्यश्री की संकल्प शक्ति के परिणाम स्वरूप ही अब जैन बन्धु पूरी स्वतंत्रतापूर्वक तीर्थराज की वन्दना करते हैं। इस प्रकार आचार्यश्री के शुभ संकल्प से ही गिरनार क्षेत्र का सत्व पुनर्स्थापित हुआ।
गिरनार जी में नव निर्माण-आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज की प्रेरणा से क्षेत्र पर भव्य मानस्तम्भ युक्त समवशरण मंदिर, श्री तीन चौबीसी जिनालय एवं भगवान नेमिनाथ का 22 फुट ऊंचा भव्य जिनबिम्ब खड़ा किया गया है। दिनांक 1 दिसम्बर 1998 से 6 दिसम्बर 1998 तक शताब्दियों के बाद गिरनारजी पर 'न भूतो न भविष्यति' ऐसा पंचकल्याणक महोत्सव सम्पन्न हुआ । आचार्यश्री को समाज ने 'गिरनार गौरव' की पदवी से विभूषित किया। आप व्रतों में दृढ़ एवं साहसी हैं, सरलता अधिक है, क्रोध तो देखने तक में नहीं आता । प्रकृति शान्ति एवं नम्र है। वीतराग निर्ग्रन्थ साधुओं के प्रति अगाध श्रद्धा है ।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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