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में एक महान अतिशय युक्त बहुत बड़ी भगवान चन्द्रप्रभु की स्फटिकमणि की चमत्कृत दिव्य प्रतिमा थी । श्रावकों ने जाते-जाते उस प्रतिमा जी को वेदी सहित यमुना में डुबो दी। बहुत वर्षों बाद फिरोजाबाद में एक जिनभक्त को स्वप्न आया कि स्फटिकमणि की महान अतिशययुक्त प्रतिमा नदी के मध्य अमुक स्थान पर वेदी सहित जलमग्न है। वह कहां, कैसे मिलेगी ? इसका उत्तर भी स्वप्न में ज्ञात हुआ कि फूलों से भरी टोकरी नदी में बहा दी जाये और बहते - बहते वह टोकरी जहां रुक जाये, वहीं प्रतिमा मिलेगी। फलस्वरूप वैसा ही किया गया। अगाध जल में टोकरी रुकी। भारी जल में प्रवेश कर प्रतिमा निकालना दुष्कर कार्य था, किन्तु महान अतिशय ! उस समय हुआ कि ज्यों-ज्यों नदी में प्रवेश करते गये, पानी घटता गया, अन्त में प्रतिमा तक पहुंचे। प्रतिमा उठाई और वापस लौटने लगे तब पानी का प्रवाह पूर्ववत् हो गया। बड़ी धूमधाम, गाजे बाजे के साथ जलूस निकालकर फिरोजाबाद के मंदिर में वह प्रतिमा विराजमान की गई। वर्तमान में यह मंदिर चन्द्रप्रभु मंदिर कि नाम से विख्यात है ।
इसी चन्द्रवार नगर में पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में महाराधिराज रामचन्द्र देव के शासन काल में महाराज उर्फ मोदी नामक दि. जैन पद्मावती पुरवाल जाति में उत्पन्न एक जैन श्रावक थे। उस समय चन्द्रवार के कुछ पठान एवं महाराज मोदी फिरोजाबाद आकर बस गये । आचार्यश्री का जन्म इन्हीं महाराज मोदी के वंश में हुआ ।
जन्म - आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी का जन्म मिती बैसाख वदी 9 वि. 1967 को सुप्रतिष्ठ औद्योगिक नगरी फिरोजाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ । आपके पिता का नाम लाला रतनलाल जी और माता का नाम बून्दा देवी था। आप पद्मावतीपुरवाल के प्रसिद्ध कुल महाराजा खानदान के थे। यह जाति दि. जैन समाज में एक प्रसिद्ध जाति रही है। ब्रह्मगुलाल जैन मुनि एवं जुगमन्दिरदास जैसे अनेक धार्मिक सेठ तथा माणिकचन्द्र न्यायाचार्य जैसे विद्वान हुए हैं। वर्तमान में भी इस जाति के उच्च कोटि के विद्वान धर्म पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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