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ब्रह्मगुलाल का विख्यात चरित्र जुड़ा हुआ है। एक बहुरूपिये, जिसने विवशता में सिंह के वेश को धारणकर राजकुमार को भी मारकर उस भेष के अभिनय से जनता को चमत्कृत कर दिया था और बाद में राजा की आज्ञानुसार उस शोकसन्तप्त को उपदेश देने के लिये दिगम्बर जैन मुनि के गौरवमय पूज्य वेष को धारण किया और उस वेष की मर्यादा स्वरूप यर्थात मुनि चर्या अंगीकार कर ली। समस्त राज्य में जैन धर्म की प्रभावना हुई। भारत राष्ट्र के दुर्भाग्य के अनुसार ही मुस्लिम धर्मान्ध आक्रान्ताओं द्वारा चन्दवार को तहस नहस कर दिया गया। उसके विशिष्ट जिनालय में विराजमान विशाल स्फटिक मणि की प्रतिमाओं की अविनय की आशंका से भयभीत श्रावकों ने उन प्रतिमाओं को यमुना में प्रतिस्थापित कर दिया। पश्चात् दीर्घ काल में मल्लाहों को प्राप्त भगवान चन्द्रप्रभु आदि की वे प्रतिमायें प्रयत्नपूर्वक लाकर फिरोजाबाद मंदिर जी में विराजमान की गयी और भगवान चन्द्रप्रभु मंदिर के नाम से यह अतिशय क्षेत्र आज भी भव्य धार्मिक स्मारक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। कांच के सामान व चूड़ियों के उद्योग से विख्यात सुहागनगर फिरोजाबाद में ही पल्लीवाल जाति के गौरव श्री छदामी लाल जी जैन द्वारा निर्मित 43 उत्तुंग भगवान बाहुबली की खड्गासन भव्य प्रतिमा से युक्त मूल नायक भगवान महावीर का जैन नगर का विशाल जिनालय भी फिरोजाबाद की प्रसिद्धि में चार चांद लगा रहा है।
यद्यपि मैं बुढेलवाल जाति का अंग हूं फिर भी अन्य जातियों में प्रमुख रूप से पद्मावती पुरवाल जाति से मेरा निकट संबंध रहा है। संक्षिप्त आलेख में इस जाति का गौरवमय स्वरूप वर्णित नहीं किया जा सका है। शुभ कामना है कि यह समाज धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक सभी क्षेत्रों में यादच्चन्द्रदिवाकरौ उत्तरोत्तर विकास करे। इत्यलम्।
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पद्मावतीपुरवात दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास