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प्राचीन मंदिर को नवीन निर्माण के अंदर दबा देने का कारण क्या था? यह निर्माण मूलतः दो विशाल चबूतरों के रूप में था जो एक के ऊपर एक थे। दोनों चबूतरे वर्गाकार आकृति के हैं। दोनों चबूतरों में ऊपर के चबूतरे की लंबाई 53 फुट तथा नीचे के चबूतरे की लम्बाई 93 फुट है। दूसरा नवीन चबूतरा लम्बाई में 143 फुट तथा चौड़ाई में 140 फुट है। नीचे का चबूतरा अलंकृत है तथा ऊपर का चबूतरा सादा है। लगता है घेरे के निर्माण के लिए ऐसा किया गया है। जब तक उत्खनन कार्य पूर्णरूपेण सम्पन्न नहीं हो जाता तब तक इस मंदिर तथा अन्य निर्माण के विषय में निर्णायक विचार बना पाना संभव नहीं है। गुर्जरा में प्राप्त शिलालेख में पदमावती के उल्लेख में इन चबूतरों में 8 जैन मंदिरों के छिपाने का सूत्र मिलता है। यहां जैन परंपरा के विशाल स्तूप भी थे जो बाद में ध्वस्त हो गए।
पवाया- पांचोरा - छितोरी से प्राप्त ईंटों का आकार लंबाई 19 इंच चौड़ाई 10 इंच और मोटाई 3 इंच है। इन पर कुछ पर णमो जिण्णस' लिखा मिलता है। यहां एक दुर्ग भी है जो चालीस एकड़ में फैला है। इसके उत्तर पश्चिम कोने पर प्रवेश द्वार है तथा एक दरवाजा दक्षिण पूर्वी कोने पर भी है समूचा प्रासाद खण्डहर हो चुका है। यहां भी खंडित जैन मूर्तियां मिलती हैं। उत्तरापथ से दक्षिणापक्ष की ओर जाने वाले सभी यात्री पदमावती होकर ही जाते थे तीन नदियों का संगम क्रमशः पार्वती - नोन-सिंध यहां से है । नावों द्वारा भी व्यापार होता था । मणिभद्र यक्ष की उपासना के लिए तथा मनौती मनाने के लिए यह स्थान प्रसिद्ध था
मणिभद्र यक्ष की चरण चौकी पर एक महत्वपूर्ण अभिलेख अंकित है । इसकी लंबाई नौ इंच और चौड़ाई नौ इंच मात्र है। यह अभिलेख खंडित है परिणामस्वरूप ऊपर की पंक्ति के अक्षरों के ऊपर लगने वाली मात्राएं या तो मिट गई हैं या अस्पष्ट हो चुकी हैं इसलिए प्रथम पंक्ति को सही-सही पढ़ना कठिन है। अभिलेख ब्राह्मी तथा संस्कृत भाषा में है। लिपि के आधार पर इतिहासकारों ने अभिलेख का समय ईसा की प्रथम शताब्दी पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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