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के तीर्थक्षेत्रों का विशेष रूप से दौरा कर वहां के विकास कार्यों को समझा
और जनमानस को इन तीर्थों की समस्या के प्रति जागृत किया। सभी वरिष्ठ आचार्यों से चर्चा में श्री पारसदास जैन, साहू अशोक जी के साथ रहे। इस व्यापक संपर्क के फलस्वरूप देश का प्रायः सारा जैन समाज आज उनसे सुपरिचित है। उन्हें इन सेवाओं के लिए इसी वर्ष दिल्ली में आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज के सान्निध्य में दशलाक्षणी-पर्व पर एक लाख रुपएँ के, साहू अशोक जैन स्मृति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
जैन समाज का कोई भी आयोजन चाहे वह किसी भी समाज का हो, श्री पारसदास जैन के सहयोग से अछूता नहीं रहा। उन्हें सम्पूर्ण समाज का विश्वास प्राप्त है। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् के संयुक्त महामंत्री, वीर के संपादक तथा जागृत वीर समाज के संस्थापक-अध्यक्ष के रूप में समाज के उन्नयन तथा जन कल्याण के लिए उनके कार्यों की लम्बी सूची है। भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाणोत्सव के बाद उनकी शिक्षाओं को क्रियात्मक रूप देने के लिए इनकी अध्यक्षता में स्थापित संस्था 'जागृत वीर समाज' ने निरंतर जनकल्याणकारी कार्य किये हैं। इसका क्षेत्र भी देशव्यापी रहा है। असहाय, निर्धन, बेसहारा महिलाओं, विकलांगों को मदद, छात्रवृत्तियां, चिकित्सा शिविर, पिछड़े क्षेत्रों में निःशुल्क दवाइयों का वितरण आदि कार्य पीड़ित मानवता के प्रति उनकी कोमल भावनाओं के सूचक हैं। दिल्ली में इस संस्था के व्यापक रूप से बिना किसी जातिगत भेद के सेवा कार्य को राज्य सरकार ने भी सराहा। शाकाहार के प्रचार-प्रसार के लिए लगभग तीन दशक पूर्व उन्होंने जोरदार अभियान चलाया, जीवदया-मण्डल की स्थापना में सहयोग दिया और
और शाकाहार के लाभ व मांसाहार के दोषों को उजागर किया। इनके द्वारा इस विषय पर अनेक छोटी-छोटी पुस्तिकाएं लिखी गईं, जो अत्यन्त लोकप्रिय हुईं। पपावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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