________________
13. चतुर्विंशति- सन्धान- काव्य, 14 चतुर्विंशति- तीर्थंकर-काव्य, 15. सुधर्म श्रावकाचार, 16. बालबोध - जैनधर्म (स्वतन्त्र ग्रन्थ), 17. क्रिया- मंजरी ( स्वतन्त्र ग्रन्थ), 18 अनेकविध पूजा-अर्चना ग्रन्थ आदि ।
पं. श्यामसुन्दरलाल जी शास्त्री
गछ ( फिरोजाबाद, यू.पी.) में सन् 1919 में जन्म प्राप्त पं. श्यामसुन्दरलाल का जीवन बहुरंगी था । एक समृद्ध जमींदार कुल में जन्म लेकर भी पण्डित जी का स्वभाव अत्यंत मृदुल, उदार, एवं दानशील था। सन् 1935 में मुरैना विद्यालय में अपने गुरु पं. मक्खनलाल जी से उच्चकोटि की शिक्षा ग्रहण की किन्तु उसे उन्होंने आजिविका का साधन न बनाकर देश के प्रमुख नगरों में प्रवचनों के माध्यम से जन-जागरण किया। समाज ने भी कृतज्ञता से भरकर उन्हें सिद्धान्त - विज्ञ - शिरोमणि, वाणी-भूषणा आदि उपाधियों से सम्मानित किया। आपने बालकेशरी एवं स्याद्वाद - मार्तण्ड तथा जैनगजट नामक पत्र-पत्रिकाओं का भी कुशल सम्पादन किया । इनकी प्रमुख रचनाएं निम्न प्रकार हैं।
1. आचार्य विमलसागजी का जीवन-चरित,
2. भक्तामर स्तोत्र - टीका,
3. आचार्य महावीरकीर्त्ति-पूजा
•
4. षट्कर्म - समुच्चय, एवं
5. आचार्य सुधर्मसागर - चरित्र ।
अतिशय क्षेत्र महावीरजी के सहस्राब्दी महोत्सव पर आचार्य विद्यानन्द जी के सान्निध्य में आपको 1 लाख रुपयों का पुरस्कार-सम्मान मिला, उसमें आपने इक्कीस हजार रुपये अपनी ओर से जोड़कर बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट कर दिये, जिनके ब्याज से सुयोग्य विद्वान को प्रतिवर्ष ग्यारह हजार रुपयों के महाकवि रघू नामक पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
354