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1. पासमाहचरिउ, 2. धण्णकुमारचरिउ, 3. सुक्कोसलचरिउ, 4. तिट्ठिमहापुराणपुरिसचरिउ, 5. पुण्णासवकहकोसु, 6. जसहरचरिउ (सचित्र), 7 कउमुइकह-पवंधु, 8. वित्तासारु, 9. जिमंधर- चरिउ, 10. सिद्धचक्क - माहप्पु अपरनाम सिरिसिरिवालचरिउ, (मूल पाण्डुलिपि फ्रांस (परिस) के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है।) 11. सम्मइजिण चरिउ, 12. मेहेसर - चरिउ, 18. रिट्ठणेमिचरिउ, 14. बलहद्दचरिउ, 15. सम्मत्तगुण पिहाण - कव्व, 16 सोलहकारण- पूजा, 17. दहलक्खण- पूजा, 18. अणथमिउ-कहा, 19. बाराभावणा, 20. संतिणाहचरिउ (त्रुटित, सचित्र), 21. अप्पसंबोहकव्वु, 22 सिद्धतत्वसारु, 23. संबोहपंचासिका, एवं 24. पज्जुण्णचरिउ ( अनुपलब्ध) 25. करकंडुचरिउ ( अनुपलब्ध), 26. भविसयत्त कहा ( अनुउपलब्ध) ।
इनमें से उक्त संख्या - क्रम संख्या 1-3 एवं 5 तथा 11वां ग्रन्थ प्रकाशित हैं। बाकी के सभी अप्रकाशित हैं।
महाकवि अपने युग का चतुर्मुखी प्रतिभा सम्पन्न विशिष्ट कोटि का कवि था । उसकी भाषा सान्ध्यकालीन होने के कारण भाषा - विज्ञान के महारथियों ने उसे भाषा - विज्ञान की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण माना ही, उत्तर मध्यकालीन मालवा, विशेष रूप से गोपाचल के इतिहास, संस्कृति तथा - जीवन के अध्ययन की दृष्टि से भी बेजोड़ माना है। यह भी कहा जा सकता है गोपाचल एवं मालवा का उत्तर मध्यकालीन इतिहास एवं संस्कृति की विविध पक्षीय लेखन रइधू-साहित्य के बिना सम्भव नहीं ।
महाकवि ब्रह्मगुलाल
महाकवि ब्रह्मगुलाल के विस्मयकारी जीवन-चरित्र से कौन प्रभावित नहीं होगा, जो एक ओर सद्गृहस्थ थे, दूसरी ओर स्वांग रचाने में सिद्धहस्त अभिनेता । जैसा कि कहा गया है
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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