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________________ आचार्य श्री श्रेयांस सागर जी, परम आचार्य श्री अभिनन्दन सागर जी को आचार्य पद एवं अनेक मुनि एवं आर्यिका दीक्षायें करवायीं। ___ समाज को बाबाजी के रूप में ऐसा रत्न प्राप्त था जिसकी धार्मिक प्रतिभा एवं श्रमण संस्था की प्रभावना ने समाज में नई धारा प्रवाहित की। आपने जैन दर्शन के गहरे अध्ययन-मनन से कई स्वतंत्र रचनाएं की जिनमें शान्ति-विधान की पूजन एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शान्ति विधान की पूजन बड़ी रोचक शैली में सरल अर्थों से परिपूर्ण है। पुरन्दर व्रत विधान इनकी अन्तिम रचना थी। __ श्री महावीरजी स्थित श्री शान्ति वीर नगर संस्था का भव्य मन्दिर एवं विद्यालय आप की ही देन है। आप शान्तिवीर नगर के अधिष्ठाता थे। आपके कुशल नेतृत्व में इस नव निर्मित मन्दिर का निर्माण चल रहा था। 1 मई सन् 1997 को जयपुर में खण्डेलवाल प्रतिष्ठा के एक दिन पूर्व महा मंत्र का स्मरण करते हुए स्वर्गस्थ हो गये। आपका अंतिम संस्कार शान्तिवीर नगर में पूज्य आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज की छत्री के पास विधि-विधानानुसार किया गया। शांतिवीर नगर में आपका बुत (स्टेच्यूो बन चुका है जिसकी शुभ मुहूर्त में शीघ्र ही स्थापना की जाएगी। भूल को तूल मत दो किसी भी भूल को तूल नहीं देना चाहिए। यदि हो सके तो उसे भुला देना ही श्रेष्कर है। हर आदमी से कुछ भूलें अनजाने में हो ही जाती हैं। उन्हें भुला देने में ही बुद्धिमानी है। जो भूलें जानबूझ कर की जाती हैं यदि उन्हें तूल देने से बचा जाये तो बहुत से अनावश्यक विवादों से बचा जा सकता है। प्रायः लोग छोटी-छोटी बातों को तूल देकर आपस में झगड़ने लगते हैं। ऐसे अवसर पर समझदारी से काम लेकर आपसी मनमुटाव को नहीं बढ़ने देना चाहिए। -चिंतन-प्रवाहले सामार 321 पावतीपुरकाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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