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के एक धनी व्यापारी ने वैश्य महासभा (केन्द्रीय व्यापारिक संस्था) स्थापित करने पर विचार करने हेतु समस्त स्थानों के जैनियों को आमंत्रित किया। इस आमंत्रण पर 84 स्थानों के प्रतिनिधि उपस्थित हुए। उस समय से 84 स्थानों से आए हुए प्रतिनिधियों को प्रतिनिधि मानकर 84 जाति संख्या निर्धारित हो गई । 84 जातियों की अनेक सूचियां हैं जिनको देखने से पता चलता है कि बहुत से नाम एक दूसरे की सूची से नहीं मिलते। ऐसा भी माना जाता है कि भिन्न प्रान्तों में परिस्थितियोंक्श कुछ को जैनियों में मिलाया गया और उनकी जाति कायम कर दी गई। इस प्रकार हर प्रान्त की सूची 84 जातियों की अलग-अलग है, केवल कुछ जातियों की समानता है । इस प्रकार देश में जैन समाज में कितनी ही जातियां स्थापित हो गई ।
कुछ जातियों में ऐसी प्रथा थी कि जाति विरुद्ध कार्य करने पर या धर्म के विपरीत आचरण करने पर उस व्यक्ति को जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था तथा कुछ दण्ड देने पर उसको शामिल भी कर लिया जाता था । परन्तु इससे एक हानि यह हुई कि बहिष्कृत लोगों को अलग समूह बनाने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस प्रकार पांचा श्रीमाली या लाइव, चौसखे परवार, अलग समूह बनकर अलग जातियां बन गईं। कुछ जातियों में आपसी मतभेद या अन्य कारणवश उनके गोत्र अलग होकर अलग जात बन गये । गोलालारे समाज में खरौआ एक गोत्र था जो कारणवशात अलग होकर एक स्वतंत्र जैन जाति में परिणित हो गया। इसी प्रकार
चू जाति का गोत्र बुढ़ेले अलग बुढ़ेलवाल जाति बन गई ।
जातियों के निर्माण में सहायक एक कारण यह भी रहा है कि गिरती हुई संख्या में एक जाति दूसरे में शामिल हो गई। इसका उदाहरण यह है कि पहले 'अठसखा' और 'परवार' दो अलग-अलग जातियां थीं। कालान्तर में दोनों मिलकर 'अठसखा परवार' हो गई। यह बात इससे स्पष्ट है कि
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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