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ने प्रारम्भ के कुछ वर्षों तक अपनी एक बैंक की स्थापना करके उसका संचालन किया। इस संस्था का मूल लक्ष्य समाज के लोगों को व्यापारिक कार्य हेतु धन की व्यवस्था करना, विधवा और असहाय महिलाओं को आर्थिक सहायता करना, कमजोर व साधनहीन छात्रों को पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति के रूप में धन की व्यवस्था करना था। व्यवसायिक धन की वापसी कुछ न्यूनतम ब्याज के साथ साल के एक निश्चित दिन करना अनिवार्य होता था। कमोवेस आज भी यह संस्था अपने सीमित साधनों के साथ कुछ असहाय महिलाओं की सहायता करते हुए जीवन्त है।
इन सामाजिक गतिविधियों को मूर्तरूप देने के सूत्रधारों में से कुछ प्रमुख नाम हैं बाबू ज्योति प्रसाद, श्री खूबचन्द्र, श्री हरमुखराय, बाबू हजारीलाल, एडवोकेट, बाबू सुनहरी लाल मुख्तार, मास्टर संतलाल, श्री रघुवरदयाल गोटेवाले, लाला रामशरण लाल, पाण्डे श्रीनिवास, पं. श्यामसुन्दर लाल शास्त्री, हकीम प्रेमचन्द्र आदि कितने ही ऐसे नाम हैं जो उस समय के संगठन पुरोधा पुरुष के रूप में आज भी याद किए जाते हैं।
स्वतंत्रता के बाद आस-पास के देहात ग्रामों से तेजी के साथ बड़ी संख्या में इस जाति के लोगों का नगर में स्थाई रूप से रहने के लिए आना प्रारम्भ हो गया। बढ़ती भीड़ ने लोगों को प्रायः एक दूसरे से थोड़ा दूर किया, कारण था सभी के सामने अपने काम धन्धे को जमाने की समस्या। इस समस्या के चलते सामाजिक क्रिया कलापों में ठहराव सा आने लगा। सन् 1984 में एक बार लोगों ने प्रयास करके पंचायत का पुनः गठन किया श्री सुनहरी लाल इसोली वालों को अध्यक्ष तथा श्री देवेन्द्र कुमार एडवोकेट को उसका मंत्री बनाया गया, किन्तु सत्यार्थ यह है कि पंचायत की गतिविधियां फिर भी मृतप्राय ही रहीं और वह अपनी पूर्व गरिमा को प्राप्त नहीं कर सकी। इस बीच में पंचायत भले ही गतिशील नहीं रही हो किन्तु नगर में
पचायतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उदभव और विकास
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