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दिल्ली में रहने वाले पद्मावती पुरवाल जाति के लोगों में एक जातीय संगठन बनाने का जो भाव 1911 में बना, उसे मूर्तरूप देने में अन्य प्रमुख लोगों के साथ-साथ श्री बनारसीदास जी की भी अहम् भूमिका रही। पंचायत में उनकी पंच जैसी स्थिति रही। 1935 में श्री बनारसीदास जी का स्वर्गवास हो गया। ___ श्री बनारसीदास के श्री पद्मचन्द जी और शुकलचन्द जी दो पुत्र हैं। श्री पदमचन्द जी के तीन पुत्र हैं। इनमें एक पुत्र श्री मनोज पंचायत की वर्तमान कार्यकारिणी में सहमंत्री हैं। श्री शुकलचन्द जी स्वयं पिछले लगभग 20 वर्षों से पंचायत के चौधरी हैं। उनके इकलौते पुत्र श्री अनिल जैन काफी समय से धर्मशाला का प्रबंधक के रूप में कार्य देख रहे हैं। लगभग पूरा परिवार प्रतिदिन भगवान का अभिषेक और पूजन पाठ करता है। सभी धार्मिक आयोजनों में गहरी रुचि लेते हैं। मंदिरजी के सामने ही निवास और व्यवसाय होने के कारण पंचायत के कार्य निष्पादन में इस परिवार का बड़ा योगदान है।
स्व. श्री वृन्दावनदास जैन सन् 1888 के आसपास एटा जिले के गांव होच्ची में रहने वाले धर्मनिष्ठ श्री चुन्नीलाल जी के 12 वर्षीय पुत्र श्री वृन्दावनदास जी दिल्ली में आकर जैन परिवारों के गढ़ धर्मपुरा में रहे और यहीं उन्होंने पंसारी की दुकान से अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था की। यथासमय उनका विवाह हुआ और कई संतानों की बाल मृत्यु के पश्चात् उन्हें क्रमशः तीन पुत्रों के सुख की अनुभूति हुई। ____1911 में पद्मावती पुरवाल पंचायत की स्थापना की प्रारम्भिक भूमिका से अपने जीवन के अंत समय तक वे पूरी तरह सक्रिय (जुड़े) रहे। धार्मिक भावना से ओत-प्रोत, स्वभाव से विनम्र और मिलनसार श्री
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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