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जीवंत समाज अपने इतिहास के महापुरुषों अर्थात पूर्वजों में अच्छी और प्रेरणादायी बातें खोज कर उन्हें रेखांकित करता है और विकृत समाज उनके दुर्बल पक्ष को । आओ हम सब मिलकर उन महापुरुषों की इस उपलब्धि को नमन कर अपने धार्मिक और सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति अधिक जागरूक और निष्ठावान बनने का संकल्प करें।
स्व. श्री जमनादास चूहालाल, दिल्ली गेट
सन् 1880 के आसपास एटा जिले में पैड़त जनपद के प्रमुख जमींदार श्री बिहारीलाल जैन के दो पुत्र श्री जमनादास और चूहालाल दिल्ली आये और मुगलकालीन श्री दिगम्बर जैन मंदिर दिल्ली गेट के पास रहने लगे। यहां पर दोनों भाइयों ने अनाज की आड़त और भुने चने का व्यवसाय किया। प्रभु कृपा से व्यवसाय में अच्छी आय होने पर इन्होंने मंदिरजी के सामने फूटा गड्ढे में एक कच्चा मकान खरीद लिया। इसके बाद तिराहे बैराम खां में सोने-चांदी का काम किया। सुरक्षा की दृष्टि से अपने कच्चे मकान की पक्की हवेली बनवा ही रहे थे कि उनके घर डाका पड़ गया। माल की रक्षा में चूहेलाल को काफी चोट आई। समुचित उपचार के बाद भी वे स्वस्थ नहीं हो सके और 1940 में उनका स्वर्गवास हो गया। श्री चूहेलाल के कोई संतान नहीं थी ।
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श्री जमनादासजी श्री चूहेलालजी के बड़े भाई थे। वे कुशल व्यवसायी, दूरदृष्टि और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। सन 1911 में दिल्ली में रहने वाले पद्मावती पुरवाल जाति के लोगों को संगठित करने में आपका बड़ा योगदान था । संगठन को आगे बढ़ाने और आपसी विवाद निबटाने में उनकी भूमिका पंच जैसी रहती थी। पद्मावती पुरवाल जाति द्वारा स्थापित अस्थायी मंदिर को स्थायी बनाने और समाज को पुनर्गठित करने में पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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