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4. किसी व्यापार व्यवसाय के नाम पर। गोत्र भेद विवाह के समय कितने गोत्रों पर विचार किया जाय इस पर आधारित थे।
अनेकान्त जून 1969 में पं. परमानन्द शास्त्री ने लिखा था कि पद्मावती पुरवाल समाज में 33 गोत्र हैं। हमने पद्मावती पुरवाल समाज के लोगों से चर्चा की तो वे गोत्र शब्द सुनकर आश्चर्यचकित हुए। वे गोत्र शब्द को ही भूल गये हैं। उनका कहना है कि हमारे गोत्र नहीं होते। पत्र व्यवहार से मालूम करने का प्रयत्न किया तो अनभिज्ञता ही के समाचार मिले। इस बात की पुष्टि भी उस समय हुई जब श्री नरेन्द्रप्रकाश जी जैन का लेख पद्मावती पुरवाल पत्रिका नवम्बर 1999 में 'गौरवास्पद पद्मावती पुरवाल समाज' पढ़ा। पृष्ठ 5 पैरा 3- .
"प्राचीन साहित्य में इस जाति के सिंह और धार दो गोत्रों की चर्चा मिलती है। इस सदी के पूर्वार्ध में सिरमोर, पाण्य और सिंघई गोत्र प्रचलन में थे। अब इतनी जानकारी भी आम लोगों को नहीं है। हां, परम्परा से गृहस्थाचार्य का दायित्व अद्यावधि निभाते रहने से पाण्डे गोत्र का अस्तित्व आज भी यथावत है।"
लेकिन अन्य स्त्रोतों से इस प्रकार जानकारी प्राप्त हुई1. पुरवार जैन समाज का इतिहास-पृ. 550 'उ.प्र. में जो गोत्र प्रचलित हैं उनके नाम-1. सिरमौर, 2. पांडे, 3. सिंघई, 4. कोड़िया, 5. कड़सरिया, 6. सिन्ध, 7. धार, 8. पाढ़मी।' 2. वैश्य समुदाय का इतिहास-अध्याय 28/7'इनके प्रमुख गोत्रों में 1. पांडे, 2. केड़िया, 3. पादमी, 4. अजमेरा या श्रीमोर आदि हैं।
प्रतिष्ठाचार्य पं. कन्हैयालाल जी अपने गोत्र 'नारे' से ही 'नारेजी नाम 203
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास