________________
गिरनारजी गिरनार पर्वत सुप्रसिद्ध तीथक्षेत्र हैं यह गुजरात राज्य के सौराष्ट्र प्रांत में स्थित है। गिरनार क्षेत्र पर जैन धर्म के बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) के तीन कल्याणक-दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण हुए थे। यहां पर भगवान की दिव्य ध्वनि खिरी थी। यहीं उनका धर्मचक्र प्रवर्तन हुआ था। वे यहां अनेक बार पधारे और उनकी कल्याणमयी देशना से अनेक भव्य जीवों का कल्याण हुआ और निर्वाण भी हुआ। इनके अतिरिक्त यहां से प्रद्युम्न कुमार, शम्बुकुमार, अनिरुद्ध कुमार, वरदत्तादि, बहत्तर करोड़ सात सौ मुनियों ने मुक्ति प्राप्त की। अतः यह क्षेत्र वस्तुतः अत्यधिक पवित्र बन गया।
राजुलमती ने भी संयम धारण कर दीक्षा लेकर इसी पर्वत पर तप किया।
पढ़ें इसी पुस्तक में आचार्य श्री निर्मलसागरजी का जीवन वृत्त।
राजगृही जैन धर्म में राजगृही नगरी का एक विशिष्ट स्थान है। वह कल्याणक नगरी है, निर्वाण भूमि है और भगवान महावीर के धर्म चक्र प्रवर्तन की भूमि है। धर्म भूमि होने के साथ-साथ वह युगों तक राजनीति का केन्द्र भी रही है और भारत के अधिकांश भाग पर उसने प्रभावशाली शासन भी किया है। इसलिए इस नगरी ने इतिहास में निर्णायक भूमिका अदा की है।
इस नगरी में भगवान मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान चार कल्याणक हुए थे।
इस नगर में पांच पर्वत हैं। इसलिए इसे 'पंच पहाड़ी' भी कहा जाता है। इन पांच पर्वतों में बेभार, त्रटाषिगिरि, विपुलगिरि और बलाहक ये चार पर्वत सिद्धक्षेत्र रहे हैं। यहां से अनेक मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया है पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
184