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उदयगिर पर गुफायें। यहां से कलिंग देश के 500 मुनिराज मोक्ष गये तो निर्वाण क्षेत्र है सिद्ध क्षेत्र है।
अब से 22 सौ वर्ष पूर्व उड़ीसा में एक प्रतापी राजा खारवेल हुआ था। उसने पश्चिम, दक्षिण तथा उत्तर में विजय यात्रायें करके चक्रवर्ती राजा का पद प्राप्त किया था। उसने मुक्तेश्वर के निकट उदयगीर की एक विशाल प्राकृतिक गुफा के मुख एवं छत पर 17 पंक्तियों का एक लेख प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि से खुदवाया था। यह गुफा स्थानीय भाषा में 'हाथी गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
शिलालेख में कलिंगराज खारवेल ने अपने 13 वर्ष के राज्यकाल का वृतान्त दिया है। राजा खारवेल ने चतुर्दिक विजय की उपरान्त अपने 13वें राज्य वर्ष में कुमारी पर्वत पर अरहंतों की पूजा के लिए काय-निषिद्या का निर्माण कराया तथा प्रियदर्शी राजा अशोक ने जिस रीति से बुद्ध-वचनों के संरक्षण के लिए बौद्ध श्रमणों की तृतीय संगीति बुलायी थी उसी रीति से वर्ष 165 से व्यच्छिन्न होती हुई महावीर वाणी के संरक्षण के लिए एक श्रमण सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में सभी दिशाओं से आए निर्ग्रन्थ श्रमण, ज्ञानी, तपस्वी, ऋषि तथा संघों के नायक कुमारी पर्वत पर हाथी गुफा वाले पर्वत शिखर पर रानी सिधुला की निसिया के समीप शिला पर एकत्र हुए। श्रमण भगवान महावीर की शांतिदायी वाणी को उनके प्रधान शिष्यों ने, जो उनके 11 गणों अथवा संघों के नायक होने के कारण गणधर कहलाते थे, शब्द रूप देकर 12 अंगों में बांट दिया था और क्योंकि इसे श्रुत रूप में स्मृतिवृद्ध रखा गया था, इसलिए वह 'द्वादशांग श्रुत' कहलाता था। इस सम्मेलन में इसी द्वादशांग श्रुत का पाठ हुआ।
हमारे देश का नाम भारत वर्ष था, इसका प्रथम पुरातात्विक प्रमाण खारवेल के इसी शिलालेख से मिलता है। हमारे देश का विंध्य पर्वत से उत्तर का भाग उत्तरापथ कहलाता था, इसका प्रमाण भी इसमें मिलता है।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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