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शास्त्रीय मान्यता है कि जहां से तीर्थंकरों ने मुक्ति प्राप्त की उस मान पर सौधर्मेन्द्र ने स्वस्तिक बना दिया जिससे उस स्थान की पहचान हो सके । यतिवर मदनकीर्ति ने 'शासन चतुस्त्रिशिका' नामक ग्रन्थ में यहां तक लिखा है कि सम्मेदशिखर पर सौधर्मेन्द्र ने बीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित कीं । वे प्रतिमाएं अद्भुत थीं। उनका प्रभामण्डल प्रतिमाओं के आकार का था। श्रद्धालु भव्यजन ही इन प्रतिमाओं का दर्शन कर सकते थे ।
अनुश्रुति यह भी है कि महाराज श्रेणिक बिम्बसार ने सम्मेदशिखर पर बी मंदिर बनवाये थे । इसके पश्चात् सत्रहवीं सदी में महाराज मानसिंह के मंत्री तथा प्रसिद्ध व्यापारी गोधा गोत्रीय रूपचन्द्र खण्डेलवाल के पुत्र नानू ने बीस तीर्थंकरों के मंदिर बनवाए। नानू के बनवाये हुए वे ही मंदिर या टोंके अब तक वहां विद्यमान हैं। मंत्रिवर नानू ने इन मंदिरों (टोंकों) में चरण विराजमान किये थे। 28
तीर्थराज सम्मेद शिखर जी पर पद्मावती पुरवाल समाज का योगदान
1. श्री सम्मेदशिखर जी में स्थित तेरापंथी कोठी में कमरा नं. 37 'स्व. श्री मद्दामल जी के सुपुत्र स्व. बाबू सूरजभान जी की धर्मपत्नी ब्र. चिन्तामणि बाई पद्मावती पोरवाल जैन, कलकत्ता ने बनवाया वीराब्द
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2. श्री सुनहरीलाल जी, आगरा ने रेलिंग लगवाई। सम्मेदशिखर जी तेरा पंथी कोठी जिनालय मेंध्रौव्य कोष
1. सुजालपुर निवासी (म.प्र.) स्व. लाजमल जी मगनमल जी पद्मावती पोरवाल की स्मृति में पत्नी श्रीमती रेशम पुत्र अतुल कुमार, राजकुमार, पौत्र अंशुलकुमार सिरमौर द्वारा ध्रुव फंड में 5001/- भेंट |
2. स्व. पिता श्री निवास शास्त्री स्व. माताजी की स्मृति में श्री पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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